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Bharat और India दो अलग देश हैं

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भारत और India दो अलग देश हैं  भारत- जहाँ अभी भी बिजली का इंतज़ार है, India - जहाँ रौशनी का बाजार है।  भारत- जहाँ धंधे में भी रिश्तेदारी है, और India- जहाँ रिश्तों में भी व्यापारी हैं।  भारत - जहाँ पाँव छूने का अब भी रिवाज़ है, और India- जहाँ संस्कारों के बस कुछ अवशेष हैं।   भारत और India दो अलग देश हैं   भारत और India दो अलग देश हैं  भारत में अब भी चीनी के पराठे खाते हैं, और India- जहाँ मिठाई से भी चीनी हटते हैं।  भारत वो अलसायी भोर- जहाँ नाश्ते में सब्ज़ी कचौड़ी, और India वो दौड़ती सुबह, जहाँ cornflakes भी प्लेट में छोड़ी।  भारत में टूट के खाने का, और India में Gym जाने का craze है।  भारत और India दो अलग देश है  भारत और India दो अलग देश है भारत- जहाँ हर शाम बातों पर बात होती है, India- जहाँ दोपहर के बाद सीधी रात होती है।  भारत- जहाँ पकवान बने तो पड़ोस में बांटा जाता है, और  India- जहाँ पडोसी बिन बात के ही लड़ जाता है।  भारत में पूरा गाँव ही पड़ोस है, और  India में पड़ोसियों में ही क्लेश है।  भारत और India दो अलग देश है भारत और India दो अलग देश है भारत में महीने की शुरुआत में ही पूरी शॉपिंग हो ज

मुश्किल है

ऐ खुदा तुझे समझ भी पाना मुश्किल है  क्या देकर क्या लिया, बतलाना मुश्किल है  पूरा दिन घर वालों के साथ ही हैं  पर उनके साथ समय बिताना - मुश्किल है  हवा साफ़ है, सड़क है खाली  पर long drive पर फिर भी जाना - मुश्किल है  ऐ खुदा तुझे समझ भी पाना मुश्किल है  क्या देकर क्या लिया, बतलाना मुश्किल है  हाथ धो धो कर साफ़ कर लिया है कितना  पर किसी के साथ भी हाथ मिलाना - मुश्किल है  हवा है ताज़ी, है फूलों की खुशबू  पर नाक से अपने mask हटाना मुश्किल है  ऐ खुदा तुझे समझ भी पाना मुश्किल है  क्या देकर क्या लिया, बतलाना मुश्किल है  याद आते हैं, यारों के संग बीते वो पल  उस समय को अब वापस ला पाना- मुश्किल है  महीनो बाद मिले भी तो उन यारों से  उन यारों को गले लगाना- मुश्किल है  ऐ खुदा तुझे समझ भी पाना मुश्किल है  क्या देकर क्या लिया, बतलाना मुश्किल है  Master Chef देखो आज हर घर में हैं  पर किसी को दावत पे बुलाना- मुश्किल है  घर और दफ्तर के संतुलन की कोशिश में, अब घर और दफ्तर में फर्क बताना - मुश्किल है  ऐ खुदा तुझे समझ भी पाना मुश्किल है  क्या देकर क्या लिया, बतलाना मुश्किल है  किस बेदर्दी से मर्ज़ बनाया है तूने 

दोस्ती

दोस्ती हाथ पकड़ उसका रोज़ स्कूल जाना भी दोस्ती है मम्मी को उसकी सारी बातें बताना भी दोस्ती है Lunch Box पूरे दिन सबसे बचाना भी दोस्ती है और एक वो मिठाई दोस्त को खिलाना भी दोस्ती है   Attendence में उसकी proxy लगाना भी दोस्ती है और गलती में उसकी खुद डांट खाना भी दोस्ती है   हंसना ही नहीं , हंसते हंसते रुलाना भी दोस्ती है और भटके हुए यार को राह पर लाना भी दोस्ती है   दुनिया के लिए सख़्त , यारी में टूट जाना भी दोस्ती है और कभी दोस्त को मनाते , खुद ही रुठ जाना भी दोस्ती है   उसको , उससे बेहतर जान पाना भी दोस्ती है गर वो भूल जाए , तो उसको उसी की याद दिलाना भी दोस्ती है   नजर में ना सही , ख़यालो में आना भी दोस्ती है साथ चलना ज़रूरी नहीं , दूर रहकर साथ निभाना भी दोस्ती है   ~ शैलेन्द्र

माँ

माँ मुझको छोटा फिर कर दो इन तकियों पर अब नींद ना आती पल भर को अपनी गोदी में सर दो माँ मुझको छोटा फिर कर दो कोई भी गलती कर के आऊं आँचल में छिप जाने दो उस चिंटू की मम्मी को फिर से ज़ोर ज़ोर चिल्लाने दो गलती करने की ताकत दो बातें सुनने का साहस दो गलत करूँ पर सीख भी जाऊँ आगे बढ़ने से न घबराऊँ तुम मुझको बस ऐसा वर दो माँ मुझको छोटा फिर कर दो बड़े होने का शौक बहुत था बड़ा हुआ, देखा संसार मिली है शौहरत, मिली मोहब्बत मिला नहीं तुझ जैसा प्यार बहुत से लोग हैं चाहने वाले बड़े रिश्तों ने घेरा है पर मैंने खाना समय पे खाया यह सवाल बस तेरा है दूध भात का एक निवाला, फिर से मेरे मुँह में भर दो माँ मुझको छोटा फिर कर दो बड़े घर की ऊंची छत को फिर से कच्चे खपड़े का कर दो बिस्तर जो बनता गुड्डे का संदूक वही कपडे से भर दो इस पक्के घर से ऊब गया हूँ फिर मुझको गुड़ियों का घर दो माँ मुझको छोटा फिर कर दो वो एक कहानी बचपन वाली फिर से मुझे सुनाओ ना वो राजा की कितनी रानी थी मैं भूल गया, बतलाओ ना हर एक कहानी में जादू सा तुम कमाल कर देती थी और सामने मेरे जो भी मुश्किल हो

जब निकलेंगे बाहर दोबारा

जब निकलेंगे बाहर दोबारा  जब ज़हर हवा का कम होगा और इन ज़ख्मों का मरहम होगा हम ढा न दें कोई नया कहर तब घोल न दें हम नया ज़हर न भूल जाएँ ये वक़्त हमारा जब निकलेंगे बाहर दोबारा  जब लक्ष्मण रेखा मिट जाएगी और राहें आवाज़ लगाएगी हम शुरू करेंगे एक नयी खोज सर ले लेंगे दुनिया का बोझ फिर छूट जायेगा ये घर बेचारा जब निकलेंगे बाहर दोबारा  घर की दीवार फिर ढूंढेगी और खिड़की पर्दो से पूछेगी वो लोग क्या फिर से चले गए चलो, जितने भी दिन थे भले गए घर बन जायेगा फिर से होटल दोबारा जब निकलेंगे बाहर दोबारा  पक्षियों का गीत फिर छिप जायेगा जब गाड़ियों का हॉर्न बज जायेगा नीला आकाश फिर मैला हो जायेगा जब हर और धुआं छा जायेगा फिर ढूंढेंगे ये दिन दोबारा जब निकलेंगे बाहर दोबारा  कुछ सीख ही क्यों न ले ली जाये जीने में थोड़ा जीवन मिलाएं बेहिसाब भागना कुछ कम करें कुछ पल रुकें, कुछ मुस्कुराएं जग एक नया रूप देखे हमारा जब निकलेंगे बाहर दोबारा  कुछ पल अपने भी साथ बितायें कुछ तारों संग भी रात बिताएं कुछ खुद से भी तो सवाल करें कुछ दूसरों का भी ख्याल करें कभी बन के देखें किसी का सह

The positive discontinuity: COVID19

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Amongst the negativity surrounding COVID19 and the ‘forced actions’ we have to take, it’s easy for us to get drawn in this and be negative and depressed. But let us take a moment to understand if there’s a greater story or a ‘bigger picture’. Nature has a way to balance off things. Just as we sneeze when there’s an unwanted substance in our nostrils or the body vomits if something messes up in the stomach. The nature has designed ways to counter things which tries to disturb the balance or harmony. The COVID19 comes as a ‘reset’ to the food we are eating, a ‘reset’ to the air we are breathing, a ‘reset’ to the thoughts we are entertaining- basically a ‘reset’ to the lifestyle we are leading. We have been running around in quest of something which we don’t even know and in the process have destroyed not just our health & relationships but also nature. And when we were in an unstoppable mode, nature has put the brakes on and brought everything to a screeching halt. A

वो तुम हो

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वो तुम हो चोट सहना तो आम बात है जिस चोट को ताज़ा रखना है वो तुम हो रात में चांद तो देखते हैं सब जिस चांद को हर पल तकना है वो तुम हो हां समय रुका नहीं करता वो पल जब सब रुक गया वो तुम हो ऊंचाई से था प्यार मुझे वो गहराई जहां मैं भी झुक गया वो तुम हो चट्टानों को चीर बढ़ जाता था मैं जिस हवा से जा टकराया वो तुम हो अंधेरों से थी दोस्ती मेरी जिस रोशनी से मैं घबराया वो तुम हो उलझनों को सुलझाना तो पेशा था मेरा जिस सादगी से उलझ गया वो तुम हो ज़ुबां तो मेरी सब पढ़ लेते थे जो मेरी खामोशी समझ गया वो तुम हो यूं तो गाने को हैं गीत बहुत वो गीत जिसे गाकर झूमता हूं वो तुम हो तुमसा कोई, कहीं ना होगा फिर भी, हर चेहरे में जिसे ढूंढ़ता हूं वो तुम हो ~शैलेन्द्र The song rendition of this poem. My first ever song.